Coronavirus : बेवजह घर से निकलने की जरुरत क्या है? लॉकडाऊनमध्ये करणार काय? पिंपरी - 'बेवजह घर से निकलने की ज़रुरत क्या है? मौत से आंख मिलाने की ज़रुरत क्या है?" असा संदेश उर्दू, हिंदी, मराठी, सिंधी साहित्यिकांनी रविवारी (ता. २९) दिला. निमित्त होते पुण्यातील ''प्रयास हिंदी, उर्दू, मराठी साहित्य अकादमीतर्फे सकाळी आठ ते सायंकाळी सहा या वेळेत आयोजित ऑनलाईन मैफिलीचे. बातम्या ऐकण्यासाठी डाऊनलोड करा ई-सकाळचे ऍप अकादमीने आवाहन केले होते की, ''आपको अपने फन को तराशा ने का मौका अता कर रहा हैं। आइए आज का दिन अदबी माहौल में, आपकी, पोस्ट की गई व्हिडिओ रचनाओं के साथ बिताते हैं और " सोशल डिस्टंसिंग " को मद्दे नजर रखते हुए नशिश्त का लुत्फ़ उठाते हैं। ''प्रयास''च्या मंचावर सादर झालेल्या रचना वाचकांसाठी जशाच्या तशा... प्रसव पीडा कशमकश में रात गुज़री ज़मीन पर बिखरे  कागज़ के टुकडे, रातभर लगी पानी की झडी ज़हन को सिंचती पानी की झडी पौ फटे थक कर, छत से बुंद बुंद टपकता पानी एहसांसात से लथपथ सिसकती सांसे हर्फोंकी ऑंखमिचौली धडकता दिल, रुंधता गला दूर दराज़ कोई दर्द बाहर निकलने को  तडपता हुआ कर रहा है पहले मिसरे का इंतज़ार - विजया टेकसिंगानी राधा की बातें  राधा की बातें इस युग में तुम पढ़कर बोलो क्या करोगे न कान्हा जैसा मिलने वाला न राधा जैसी सीरत कोई जिस्मों तक है सीमित चाह सभी की रूह की किसको चाह नही सुबह शाम सा बदलता प्यार व्योपार है बस बोलो कहाँ हैं प्यार कहते हो तुम कान्हा ढूंढ़ोगे राधा की तलाश करोगे रूह से रूह का प्यार बस है अब तो किस्से कहानियों की बात लिखनेवाले लिखते हैं लैला मजनू रांझा हीर कौन समझा है इस युग मे तुम बोलो राधा कृष्णा का वो निश्छल प्यार - निधि आत्मप्रश्न गुनगुनी सोंधी, इस मिट्टी इस देह की खुशबू आनंद उछालते इस मन के तीखे-मीठे अहसास बहुतेरी कल्पनाएं इंद्रधनुषी, सतरंगी, खौफनाक भी मनचीते भाव गुजरते संकरे-चौड़े मन रेगिस्तान में गहन गूढ़ विचार, अनुभव सागर सुरंगे करता पार आत्मलीन मानव सृष्टि पिरामिड पर खड़ा हुआ काल-गर्भ में समय नेकी-बदी, मरण मधुमास भरा हुआ, आज चैतन्य मय है स्पष्ट अक्सर चिलचिलाती धूप में भविष्य धुंधला हम क्या करें उत्तर खोजें या फिर बस सुचिंतन, सत्कर्म सत्पथ के यात्री बन जाएं। - डॉ. कान्तिदेवी लोधी आदत ग़म छुपाने की है आदत को हटाऊँ कैसे  आँख में नम जो शराफ़त है  छुपाऊँ  कैसे ग़म छुपाने की है ... तुने तौफा जो दिया फूल वो खंजर निकला  दिल-ए-नादान मेरा तेरी अदाने कुचला दर्द जो दिल में उठा है वो बताऊँ कैसे  ग़म छुपाने की है ... मसला नाजूक सा है कैसे बताएं सबको जिल्लते मुझको मुबारक, और उजाले तुमको रिश्ता बदनाम ना हो शोर मचाऊँ कैसे  ग़म छुपाने की है ... तुने ही नाम दिया प्यारासा इस रिश्तेको जिंदा रख पाया नहीं मैं ही मेरी हस्तीको रिस्ता कडवा जो हुआ उसको निभाऊँ कैसे ग़म छुपाने की है ... - अशोक भांबुरे  कोरोना ये छुवा छूत की बीमारी है इस की चैन को तोड़ो तुम  इस से उस से मिलना जुलना कुछ दिन यारों छोड़ो तुम  डाक्टरोंने जो बतलाया उन बातों का ध्यान करो  जो भी हैँ क़ानून नियम उन सब का तुम सम्मान करो घरसे बाहर निकलोगे तो बीमारी ये फैलेगी  एक जरासी लापरवाही जान तुम्हारी लेलेगी घर मेँ रह कर करो इबादत घर मेँ पूजा पाठ करो  रब की मर्ज़ी यही है अब तो घर मेँ रह कर ठाठ करो  कोरोनाकी इस आफतसे या रब छुटकारा देदे  हमसे जो तूने छीना वह इक इक पल प्यारा दे दे - जिया बागपति यार घर में रह चारों दिशा करोना मेरे यार घर में रह जायेगी जान तेरीही बेकार घर में रह बाहर निकल के बन न तू आसान सा शिकार कहते हैं सब तबीब भी सो बार घर में रह   हथ्थे न चढ करोनाके तू याद इतना रख  होगा परेशाँ तेरा ही घरबार घरमें रह होगा करोना तुझसे जो औरों को जान ले  तू आख़िरत में होगा ख़तावार घर में रह है हुक्म सब इमामों का घर में नमाज़ पढ़  बाहर ज़िरार तू न बना यार घरमें रह तदफीने रस्म होगी न तेरी जो यूँ मरा  होगा न तेरा आख़री दीदार घरमें रह - हिशामुद्दीन "शोला" जरूरतें जरूरतें कितनी कम हैं जीने के लिए दो वक्त की रोटी एक छोटी सी छत कुछ अहसास  और थोड़ी सी खुशी अब पता चला यूँही भाग रहे थे सभी न जाने किस तलाश में।। - निधि News Story Feeds https://ift.tt/eA8V8J - Click Live News Short news on Mobile 2019.....

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Monday, March 30, 2020

Coronavirus : बेवजह घर से निकलने की जरुरत क्या है? लॉकडाऊनमध्ये करणार काय? पिंपरी - 'बेवजह घर से निकलने की ज़रुरत क्या है? मौत से आंख मिलाने की ज़रुरत क्या है?" असा संदेश उर्दू, हिंदी, मराठी, सिंधी साहित्यिकांनी रविवारी (ता. २९) दिला. निमित्त होते पुण्यातील ''प्रयास हिंदी, उर्दू, मराठी साहित्य अकादमीतर्फे सकाळी आठ ते सायंकाळी सहा या वेळेत आयोजित ऑनलाईन मैफिलीचे. बातम्या ऐकण्यासाठी डाऊनलोड करा ई-सकाळचे ऍप अकादमीने आवाहन केले होते की, ''आपको अपने फन को तराशा ने का मौका अता कर रहा हैं। आइए आज का दिन अदबी माहौल में, आपकी, पोस्ट की गई व्हिडिओ रचनाओं के साथ बिताते हैं और " सोशल डिस्टंसिंग " को मद्दे नजर रखते हुए नशिश्त का लुत्फ़ उठाते हैं। ''प्रयास''च्या मंचावर सादर झालेल्या रचना वाचकांसाठी जशाच्या तशा... प्रसव पीडा कशमकश में रात गुज़री ज़मीन पर बिखरे  कागज़ के टुकडे, रातभर लगी पानी की झडी ज़हन को सिंचती पानी की झडी पौ फटे थक कर, छत से बुंद बुंद टपकता पानी एहसांसात से लथपथ सिसकती सांसे हर्फोंकी ऑंखमिचौली धडकता दिल, रुंधता गला दूर दराज़ कोई दर्द बाहर निकलने को  तडपता हुआ कर रहा है पहले मिसरे का इंतज़ार - विजया टेकसिंगानी राधा की बातें  राधा की बातें इस युग में तुम पढ़कर बोलो क्या करोगे न कान्हा जैसा मिलने वाला न राधा जैसी सीरत कोई जिस्मों तक है सीमित चाह सभी की रूह की किसको चाह नही सुबह शाम सा बदलता प्यार व्योपार है बस बोलो कहाँ हैं प्यार कहते हो तुम कान्हा ढूंढ़ोगे राधा की तलाश करोगे रूह से रूह का प्यार बस है अब तो किस्से कहानियों की बात लिखनेवाले लिखते हैं लैला मजनू रांझा हीर कौन समझा है इस युग मे तुम बोलो राधा कृष्णा का वो निश्छल प्यार - निधि आत्मप्रश्न गुनगुनी सोंधी, इस मिट्टी इस देह की खुशबू आनंद उछालते इस मन के तीखे-मीठे अहसास बहुतेरी कल्पनाएं इंद्रधनुषी, सतरंगी, खौफनाक भी मनचीते भाव गुजरते संकरे-चौड़े मन रेगिस्तान में गहन गूढ़ विचार, अनुभव सागर सुरंगे करता पार आत्मलीन मानव सृष्टि पिरामिड पर खड़ा हुआ काल-गर्भ में समय नेकी-बदी, मरण मधुमास भरा हुआ, आज चैतन्य मय है स्पष्ट अक्सर चिलचिलाती धूप में भविष्य धुंधला हम क्या करें उत्तर खोजें या फिर बस सुचिंतन, सत्कर्म सत्पथ के यात्री बन जाएं। - डॉ. कान्तिदेवी लोधी आदत ग़म छुपाने की है आदत को हटाऊँ कैसे  आँख में नम जो शराफ़त है  छुपाऊँ  कैसे ग़म छुपाने की है ... तुने तौफा जो दिया फूल वो खंजर निकला  दिल-ए-नादान मेरा तेरी अदाने कुचला दर्द जो दिल में उठा है वो बताऊँ कैसे  ग़म छुपाने की है ... मसला नाजूक सा है कैसे बताएं सबको जिल्लते मुझको मुबारक, और उजाले तुमको रिश्ता बदनाम ना हो शोर मचाऊँ कैसे  ग़म छुपाने की है ... तुने ही नाम दिया प्यारासा इस रिश्तेको जिंदा रख पाया नहीं मैं ही मेरी हस्तीको रिस्ता कडवा जो हुआ उसको निभाऊँ कैसे ग़म छुपाने की है ... - अशोक भांबुरे  कोरोना ये छुवा छूत की बीमारी है इस की चैन को तोड़ो तुम  इस से उस से मिलना जुलना कुछ दिन यारों छोड़ो तुम  डाक्टरोंने जो बतलाया उन बातों का ध्यान करो  जो भी हैँ क़ानून नियम उन सब का तुम सम्मान करो घरसे बाहर निकलोगे तो बीमारी ये फैलेगी  एक जरासी लापरवाही जान तुम्हारी लेलेगी घर मेँ रह कर करो इबादत घर मेँ पूजा पाठ करो  रब की मर्ज़ी यही है अब तो घर मेँ रह कर ठाठ करो  कोरोनाकी इस आफतसे या रब छुटकारा देदे  हमसे जो तूने छीना वह इक इक पल प्यारा दे दे - जिया बागपति यार घर में रह चारों दिशा करोना मेरे यार घर में रह जायेगी जान तेरीही बेकार घर में रह बाहर निकल के बन न तू आसान सा शिकार कहते हैं सब तबीब भी सो बार घर में रह   हथ्थे न चढ करोनाके तू याद इतना रख  होगा परेशाँ तेरा ही घरबार घरमें रह होगा करोना तुझसे जो औरों को जान ले  तू आख़िरत में होगा ख़तावार घर में रह है हुक्म सब इमामों का घर में नमाज़ पढ़  बाहर ज़िरार तू न बना यार घरमें रह तदफीने रस्म होगी न तेरी जो यूँ मरा  होगा न तेरा आख़री दीदार घरमें रह - हिशामुद्दीन "शोला" जरूरतें जरूरतें कितनी कम हैं जीने के लिए दो वक्त की रोटी एक छोटी सी छत कुछ अहसास  और थोड़ी सी खुशी अब पता चला यूँही भाग रहे थे सभी न जाने किस तलाश में।। - निधि News Story Feeds https://ift.tt/eA8V8J


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